प्र ० 1. निम्नांकित चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
( i ) केंद्रीय प्रवृत्ति का जो माप चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है वह है
( क ) माध्य
( ख ) माध्य तथा बहुलक
( ग ) बहुलक
( घ ) माध्यिका
( ii ) केंद्रीय प्रवृत्ति का वह माप जो किसी वितरण के उभरे भाग से हमेशा संपाती होगा वह है
( क ) माध्यिका
( ख ) माध्य तथा बहुलक
( ग ) माध्य
( घ ) बहुलक
( iii ) ऋणात्मक सहसंबंध वाले प्रकीर्ण अंकन में अंकित मानों के वितरण की दिशा होगी
( क ) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
( ख ) नीचे बाएँ से ऊपर दाएँ
( ग ) बाएँ से दाएँ
( घ ) ऊपर से दाँए से नीचे बाएँ
प्र ० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
( i ) माध्य को परिभाषित कीजिए ? :
➤किसी चर / मद के विभिन्न मूल्यों का साधारण अंकगणितीय औसत माध्य कहलाता है ।
👉यह अधिकतम न्यूनतम मूल्यों / मानों के बीच एक स्थिर मूल्य होता है ।
( ii ) बहुलक के उपयोग के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
👉किसी श्रेणी में जिस मान / मूल्य की सबसे अधिक पुनरावृत्ति होती है वह मान बहुलक कहलाता है ।
👉बहुलक में वे मान महत्वपूर्ण होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति सर्वोधिक बार हुई है ।
👉ये मान प्रायः श्रेणी के मध्य में होते हैं ।
👉अतः बहुलक पर श्रेणी के चरम मूल्यों / मानों का प्रभाव नहीं पड़ता।
( iii ) प्रकीर्णन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
👉दो चरों के बीच विशिष्ट सह संबंध अथवा साहचर्य को दर्शाने के लिए बनाए गए रेखा - चित्रों को प्रकीर्ण आरेख अथवा प्रकीर्ण अंकन कहते हैं ।
👉इस रेखाचित्र पर X तथा मानों का बिखराव प्रकीर्णन कहलाता है ।
( iv ) सहसंबंध को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर :
👉कुछ भौगोलिक परिघटनाओं के परिणाम ज्ञात करने के लिए दो या अधिक चरों के बीच साहचर्य अथवा पारस्परिक निर्भरता , उनकी प्रकृति , दिशा व गहनता का अध्ययन ही सहसंबंध है ।
( v ) पूर्ण सहसंबंध किसे कहते हैं ?
उत्तर :
👉सहसंबंध की दिशा व गहनता का विस्तार किसी भी परिस्थिति में 1 से अधिक नहीं हो सकता ।
👉सहसंबंध पूरी 1 ( एक ) होने पर ( चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक ) इसे पूर्ण सहसंबंध कहा जाता है ।
( vi ) सहसंबंध की अधिकतम सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तरः
👉सहसंबंध की अधिकतम सीमाएँ -1 से लेकर +1 के बीच कुछ भी हो सकती है ।
👉यह जितना शून्य ( 0 ) के समीप होगी सहसंबंध उतना ही कमजोर होगा तथा जितना 1 के पास होगी सहसंबंध उतना ही प्रगाढ अथवा संघन होगा ।
प्र ० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए |
( i ) आरेखों की सहायता से सामान्य तथा विषम वितरणों में माध्य , माध्यिका तथा बहुलक की सापेक्षिक स्थितियों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर :
👉सामान्य वितरण की विशेषता है कि इसमें माध्य , माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है क्योंकि सामान्य वितरण सममित होता है ।
👉इसमें अधिकतम आवृत्ति का मान , वितरण के मध्य में होता है तथा इस बिंदू से आधी इकाईयाँ ऊपर व आधी नीचे होती हैं । अति उच्च तथा अति निम्न मूल्यों की बारंबारता बहुत ही कम होती हैं ।
👉सामान्य वितरण वक्र आवृत्तियों को प्रदर्शित करने वाला रेखाचित्र घंटाकार वक्र कहलाता है ।
👉सामान्य वक्र में आंकड़ों की परिवर्तनशीलता कम अथवा अधिक हो सकती है ।
👉निम्न मूल्यों की आवृत्तियाँ अधिक तथा अधिक मूल्य की आवृत्तियाँ कम है ।
👉इस स्थिति में पहले बहुलक , फिर माध्यिका तथा अंत में माध्य आता है ।
👉इसमें कम मूल्य की आवृत्तियाँ कम तथा अधिक मूल्य की आवृत्तियाँ अधिक होती हैं ।
👉इस स्थिति में पहले माध्य , फिर माध्यिका तथा अंत में बहुलक आता है ।
( ii ) माध्य , माध्यिका तथा बहुलक की उपयोगिता का वर्णन उनके गुण व दोषों के आधार पर कीजिए ।
उत्तर :
➤सामान्य वितरण में माध्य , माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है ।
➤अधिकतम आवृत्ति का मान वितरण के मध्य में होता है ।
➤मध्य बिंदू से आधी इकाइयाँ ऊपर तथा आधी नीचे होती हैं ।
➤अधिकतर इकाइयाँ वितरण के मध्य में अर्थात् माध्य के निकट होती हैं ।
➤अति उच्च तथा अति निम्न मूल्यों की बारंबारता का बंटन बहुत ही कम होता है ।
➤सामान्य वितरण वक्र की आकृति घंटाकार वक्र जैसी होती हैं क्योंकि यह वक्र सममित होती है ।
➤यदि आंकड़े विषम अथवा विकृत हों तो माध्य , माध्यिका तथा बहुलक संपाती नहीं होंगे ।
➤सामान्य वितरण वक्र की सहायता से केंद्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापों की तुलना आसानी से की जा सकती है ।
( iii ) एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से मानक विचलन के गणना की प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर :
➤मानक विचलन , प्रकीर्णन का सर्वाधिक स्थिर भाप है ।
➤इसकी गणना हमेशा माध्य के परिपेक्ष्य में की जाती है । इसलिए इस वर्ग माध्यन्मूल विचलन भी कहते हैं ।
➤इसे अंग्रेजी अक्षर SD से अभिव्यक्त करते हैं ।
( iv ) प्रकीर्णन का कौन - सा माप सबसे अधिक अस्थिर है तथा क्यों ?
उत्तर :
➤प्रकीर्णन को मापने के लिए अनेक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं ।
➤जैसे - विस्तार , चतुर्थक विचलन , माध्य विचलन , मानक विचलन , विचरण गुणांक तथा लॉरेंज वक्र आदि ।
➤इनमें से प्रत्येक विधि के अपने विशेष गुण तथा सीमाएँ हैं । किंतु विस्तार अथवा परिसर द्वारा परिकलित माप सबसे अधिक अस्थिर है । क्योंकि इसे श्रेणी के सबसे ।
Range (विस्तार) -
➤उच्चतम मान में से न्यूनतम मान को घटाकर प्राप्त किया जाता है ।
उदाहरण -
रु ०80,85 , 95 , 100 , 110 , 120 , 200 है ।
विस्तार / परिसर की गणना के लिए सूत्र है-
R = L - S ,
जहां,
R = परिसर ( Range ) ,
L = - = - उच्चतम मान ( Largest Value )
S = निम्नतम मान ( Smallest Value )
यहाँ L = 200 , तथा S = 200 है
अतः R = L - S
अर्थात् R = 200 - 80 = 120
➤यदि इस श्रेणी में से अंतिम माने = 200 को हटा दें तब
R = 120- 80 = 40
➤इस तरह केवल एक मान को हटाने पर R का मान घटकर केवल एक - तिहाई रह गया है।
➤अतः दो चरम मानों पर आधारित परिणाम भ्रामक , अवास्तविक व अविश्वसनीय होते हैं ।
( v ) सहसंबंध की गहनता पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
➤सहसंबंध की गहनता का मापन दोनों चरों में अनुरूपता या साहचर्य की मात्रा पर निर्भर करता है ।
➤इस अनुरूपता अथवा साहचर्य की गहनता की मात्रा गणितीय दृष्टि से -1 से शून्य की ओर बढ़ते हुए +1 तक हो सकती है ।
➤अतः इसका मान किसी भी परिस्थिति में + 1 से अधिक नहीं हो सकता ।
➤सह संबंध पूरा 1 ( एक ) होने पर ( चाहे वह धनात्मक हो या ऋणात्मक ) इसे पूर्ण सहसंबंध कहते हैं ।
➤गहनतम सहसंबंध के दो विपरीत सिरों + 1 के ठीक मध्य में ( शून्य ) 0 सहसंबंध की स्थिति होती है ।
➤इस बिंदू पर या उसके समीप चरों की उपस्थिति सहसंबंध के अभाव को दर्शाती है ।
(Vi) कोटि सहसमबंध के गणना के विभिन्न चरण कौन से है ?
उत्तर :
➤स्पीयरमैन का कोटि सहसंबंध स्पीयरमैन ने कोटियों के आधार पर सहसंबंध की गणना विधि की युक्ति प्रदान की ।
➤प्रचलित रूप से इसे स्पीयरमैन के कोटि सहसंबंध के नाम से जाना जाता है जिसका सांख्यिकी में संकेताक्षर p ( ग्रीक अक्षर जिसका उच्चारण है रो - rho ) है ।
➤इसकी गणना विधि आसान होने के कारण स्पीयरमैन के सहसंबंध का उपयोग अधिक प्रचलित है ।
➤इस संबंध की गणना निम्न चरणों में की जाती है । :
( i ) अभ्यास में दिए गए X तथा Y चरों के आंकड़ों को तालिका के क्रमशः प्रथम व द्वितीय स्तंभों में उतार लिया जाता है ।
( ii ) दोनों चरों की अलग - अलग कोटियाँ निर्धारित की जाती हैं ।
X - चर की कोटियों को तृतीय स्तंभ में अंकित किया जाता है जिसका शीर्षक ( XR ) ( X- चर की कोटियाँ ) है ।
इसी प्रकार Y- चर की कोटियों ( YR ) चतुर्थ स्तंभ में अंकित किया जाता है ।
आंकड़ों में उच्चतम मान को कोटि एक दूसरे सर्वोच्च मान को कोटि दो तथा इसी प्रकार अन्य कोटियों का आवंटन किया जाता है ।
मान लीजिए X- चर के आँकड़े 4 , 8 , 2 , 10 , 1 , 9 , 7 , 30 तथा 5 हैं तो XR क्रमश : S 6 , 3 , 8 , 1 , 9 , 2 , 4 , 7 , 10 व 5 होंगी ।
ध्यान दीजिए कि अंतिम कोटि ( इस उदाहरण में 10 ) श्रेणी में कुल इकाइयों की संख्या के बराबर होती है ।
इसी प्रकार YR का भी निर्धारण में किया जाता है । YR के निर्धारण के पश्चात् दोनों कोटियों
( iii ) XR तथा में अंतर ज्ञात किया जाता है ( जिसमें धनात्मक या ऋणात्मक चिह्नों का ध्यान नहीं रखते ) ।
इस अंतर का अभिलेखन पाँचवें स्तंभ में लिखा जाता है ।
चूँकि अगले चरण में इन अंतरों का वर्ग निकाला जाता है , इसलिए इन अंतरों के साथ जुड़े ऋणात्मक अथवा धनात्मक चिह्नों का कोई महत्त्व नहीं है ।
( iv ) प्रत्येक अंतर का वर्ग ज्ञात करके उनका कर लिया जाता है । ये मान छठे स्तंभ में लिखे जाते हैं ।
( v ) इसके पश्चात् कोटि सहसंबंध की गणना निम्न सूत्र के आधार पर की जाती है।