12th Economics Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Notes in Hindi

12th Economics Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Notes in Hindi

Class : 12th
Subject : Economics (अर्थशास्त्र)
Book : Micro Economics (व्यष्टि अर्थशास्त्र)
Chapter : 2. उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 
Type : Notes 

उपयोगिता : 

किसी वस्तु में मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता को उपयोगिता कहते है | 

अर्थात जब कोई वस्तु किसी मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करता है तो वह उसकी उपयोगिता कहलाता है | 

उपयोगिता की मात्रात्मक माप कठिन है परंतु इसे संतुष्टि या आनंद की इकाइयों में मापा जाता है जिसे युटिल ( util ) कहते है । 

➡️उपभोक्ता संतुलन के आधार पर उपयोगिता की अवधारणायें : 

( 1 ) सीमांत उपयोगिता ( Marginal Utility ) : 

किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से , कुल उपयोगिता में होने वाली वृद्धि को सीमांत उपयोगिता कहते है । दुसरे शब्दों में , किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त संतुष्टि को सीमांत उपयोगिता कहते है | 

                सीमांत उपयोगिता ( MU ) = TUn - TUn-1

( 2 ) कुल उपयोगिता ( Total Utility ) : 

कुल उपयोगिता किसी वस्तु की सभी इकाइयों के उपयोग करने से प्राप्त होने वाली उपयोगिता का कुल जोड़ है । 

               कुल उपयोगिता ( TU ) = MU का योगफल

                                        TU = AU × Q

(3) औसत उपयोगिता (Average Utility ) : 

प्रति इकाई उपयोगिता को औसत उपयोगिता कहते हैं, इसे कुल उपयोगिता से उपयोगिता की इकाइयों से भाग देकर ज्ञात किया जाता है।

            औसत उपयोगिता ( AU ) = TU/Q

ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम - 

ह्रासमान सीमांत उपयोगिता के नियम के अनुसार जैसे - जैसे किसी वस्तु की अधिक से अधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है , वैसे वैसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता घटती जाती है | अतः उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा में कमी आती जाती है | 

ह्रासमान सीमांत उपयोगिता के नियम की मान्यताएँ - 

( i ) वस्तु की केवल मानक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है | जैसे - एक कप चाय ना की एक चम्मच चाय | 

( ii ) वस्तु का उपभोग निरंतर है । ऐसा नहीं की वस्तु की एक इकाई का उपभोग अब कर लिया एक का कल | 

तटस्थता वक्र - 

➤तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोगो का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है जो संतुष्टि का समान स्तर प्रकट करते है । 

➡️ उदासीन वक्र की विस्तृत व्याख्या प्रोफ़ेसर J.R. हिक्स और R.G.D. एलेन ने उपभोक्ता की मांग विश्लेषण करने के लिए किया।

तटस्थता वक्र की विशेषताएँ 

( i ) तटस्थता वक्र का ढलान दाएँ से बाएँ नीचे की ओर होता है।

( ii ) तटस्थता वक्र का ढलान मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।

( iii ) ऊँचा तटस्थता वक्र संतुष्टि का ऊँचा स्तर प्रदान करता है

( iv ) तटस्थता वक्र एक दुसरे को काटते नहीं है।

( v ) तटस्थता वक्र अक्षो को नहीं छूते है।

(vi). सीधी रेखा तथा समकोण के रूप में उदासीन वक्र

प्रस्तिथापन की सीमांत दर - 

वह दर जिस पर उपभोक्ता , वस्तु- X की अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए लिए वस्तु Y की मात्रा त्यागने के लिए तैयार है , सीमांत प्रतिस्थापन की दर कहलाती है | 

दुसरे शब्दों में , यह वस्तु Y की उस मात्रा को प्रकट करता है जो उपभोक्ता वस्तु X की एक अतिरिक्त इकाई के लिए त्यागने के लिए इच्छुक है | 

➡️ घटते हुए सीमांत प्रतिस्थापन दर लागू होने के कारण :

  1. वस्तु एक दूसरे के लिए अपूर्ण प्रतिस्थापन है।
  2. किसी वस्तु विशेष की आवश्यकता ही पूर्ण की जा सकती है।
  3. एक वस्तु की मात्रा बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की मात्रा का त्याग करना पड़ता है।
  4. एक वस्तु का उपभोग बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की आवश्यकता संतुष्ट करने में कोई बढ़ोतरी नहीं होती।

बजट समूह / बजट सेट - 

यह दो वस्तुओं के एक समूह के प्राप्य संयोगो को व्यक्त करता है जब वस्तुओं की कीमते तथा उपभोक्ता की आय दी हुई है | 

इस सेट के अंतर्गत एक से अधिक कीमत रेखा को दर्शाया जाता है।

बजट रेखा / कीमत रेखा - 

यह वह रेखा है जो दो वस्तुओं के विभिन्न संभव संयोगो को प्रकट करती है जिसे उपभोक्ता अपनी दी हुई आय तथा दोनों वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर खरीद सकता है ।

इसे बजट रेखा, कीमत रेखा, व्यय रेखा, आय रेखा आदि के नाम से जाना जाता है।

माँग - 

  • वस्तु की वह मात्रा हैं जिसे विशेष कीमत व विशेष समय अवधि में उपभोक्ता खरीदने को तैयार है । 

माँग अनुसूची / तालिका - 

  • माँग अनुसूची वह तालिका है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों तथा वस्तु की विभिन्न मात्राओं के बीच सम्बंध प्रकट करती है | 

माँग वक्र - 

  • माँग वक्र माँग अनुसूची का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है जो दर्शाती है की किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा उसकी अपनी कीमत से किस प्रकार सम्बंधित है | 

➡️मांग वक्र की विशेषताएं :

  1. मांग की रेखा ऊपर से नीचे दाहिनी ओर झुकी होती है।
  2. मांग की रेखा ऋणात्मक ढाल वाली होती है जो मांग तथा कीमत के बीच विपरीत संबंध को बताती है।
  3. जैसे जैसे सामान्य वस्तु की कीमत बढ़ती है उसकी मांग में कमी होती जाती हैं।

माँग का नियम - 

  • माँग का नियम बताता है कि अन्य बाते समान रहने पर किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने पर उस वस्तु की मांगी गई मात्रा में कमी होती है तथा वस्तु की अपनी कीमत में कमी होने पर उसकी मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है | 
  • अर्थात वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्रा में विपरीत सम्बंध होता है |
  • मांग के नियम की व्याख्या प्रो. मार्शल के द्वारा किया गया।
  • Ceterus Paribas - Other things remaining constent ( यदि अन्य बाते सामान्य रहे )

माँग के नियम की मान्यताएं :

1. उपभोक्ताओं की रुचियां तथा प्राथमिकताएँ स्थिर है । 

2. क्रेताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है | 

3. सम्बंधित वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है । 

4. उपभोक्ता की निकट भविष्य में कोई सम्भावना नहीं है । 

माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्व - 

माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों के बीच फल्नात्मक सम्बंध है । 

D = f(P)

   जहां,

        D = मांग

         f = फलनात्मक / क्रियात्मक संबंध

         P = वस्तु की कीमत

मांग की लोच (Elasticity of Demand): 

कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूम मांग की मात्रा में परिवर्तन के अनुपात को मांग की लोच कहते हैं।

🔹मांग की लोच मात्रात्मक अवधारणा है।

मांग की लोच के प्रकार :

👉 मांग की लोच के तीन प्रकार हैं -

(1). मांग की कीमत लाेच

(2). मांग की आय लोच

(3). मांग की आड़ी लोच


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